Monday, May 23, 2011

aankhein



















आपकी आंखें  तो  कुछ  ज्यादा  ही  बोलती  है
 दूधिया  आशमान  में  जैसे  दो  छोटी  काली  रात  डोलती  है
 पलकें  आपकी  कई  राज  खोलती  है
 और  भंवे   तो  बस  बातों  को  तौलती  है

  जब  चुराए  दुसरो  से  तो  दिल  तोडती  है
   जो  शर्माए  ये  तो  दिल  जोडती  है
    की  जब  झुक  जाए  तो  प्रेम  की  उम्मीद  छोडती  है
आपकी आँखें  कुछ  ज्यादा  ही  बोलती  है

 होती  ये  जो  बंद, तो  सपनो  की  चादर  ओढती  है
  टूटे  जो  अरमान  कुछ  , तो  आंशुओ   से  धोती  है
  खफा  हो  जो  कभी  तो  सुर्ख  लाल  होती  है
   आपकी आँखें  कुछ  ज्यादा  ही  बोलती  है

कभी  चंचल  ये  हिरन  सी  दौरती  है
तो  कभी  खामोश  पानी  सी  तैरती  है
 कभी  नादान  हंसी  ये , तो  कभी  बिरहा  में  रोती  है
   आपकी आँखें  कुछ  ज्यादा  ही  बोलती  है