आपकी आंखें तो कुछ ज्यादा ही बोलती है
दूधिया आशमान में जैसे दो छोटी काली रात डोलती है
पलकें आपकी कई राज खोलती है
और भंवे तो बस बातों को तौलती है
जब चुराए दुसरो से तो दिल तोडती है
जो शर्माए ये तो दिल जोडती है
की जब झुक जाए तो प्रेम की उम्मीद छोडती है
आपकी आँखें कुछ ज्यादा ही बोलती है
होती ये जो बंद, तो सपनो की चादर ओढती है
टूटे जो अरमान कुछ , तो आंशुओ से धोती है
खफा हो जो कभी तो सुर्ख लाल होती है
आपकी आँखें कुछ ज्यादा ही बोलती है
कभी चंचल ये हिरन सी दौरती है
तो कभी खामोश पानी सी तैरती है
कभी नादान हंसी ये , तो कभी बिरहा में रोती है
आपकी आँखें कुछ ज्यादा ही बोलती है
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